आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन सफलता के सात सूत्र साधनश्रीराम शर्मा आचार्य
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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...
असफलता अथवा पराजय से निराश एवं निष्क्रिय न होना तो एक नैतिक विजय है ही,
साथ ही आगे चलकर उसकी असफलता निरंतर प्रयत्नशीलता एवं एकनिष्ठ लगन के बल पर
स्थूल विजय में भी बदल जाती है। जो व्यक्ति अपने उद्देश्य के लिए यथासाध्य
उद्योग में कमी नहीं रखता वह अवश्य ही अपने ध्येय में सफल हो जाता है।
अब्राहम लिंकन अपने जीवन में हजारों बार असफल हुए, महात्मा गाँधी ने सैकड़ों
बार असफलताओं का मुंह देखा, वैज्ञानिक अपनी खोजों के प्रयत्नों में न जाने
कितनी बार असफल होते रहते हैं किंतु तब भी वे अपनी एकनिष्ठ लगन एवं निरंतर
प्रयत्नरत रहने से अंततः अपने उद्देश्य में सफल ही हुए और होते जाते हैं।
हुमायूँ अपना राज्य वापस लेने के प्रयत्न में इक्कीस बार हारा किंतु अंत में
अपनी लगनशीलता एव पुरुषार्थ के पुरस्कार स्वरूप उसने दिल्ली का राजसिंहासन
पठानों से छीन ही लिया। सच्ची लगन तथा निर्मल उद्देश्य से किया हुआ प्रयत्न
कभी निष्फल नहीं जाता।
मुमुक्षु साधक अपनी आत्मा की मुक्ति के लिए अबाध प्रयत्न ही नहीं तप भी किया
करते हैं। वे एक-दो वर्ष तक ही नहीं जन्म-जन्मांतरों तक अपने प्रयास में लगे
रहते हैं और अंत में अपने पावन ध्येय को पा ही लेते हैं। जरा-जरा-सी सफलताओं
से निराश होकर विरत प्रयत्न हो जाने वाले सुकुमार व्यक्ति को तपस्वी
मुमुक्षुओं की दृढ़ता से शिक्षा लेनी चाहिए कि वे अपनी ध्येय पूर्ति के लिए
किए जाने वाले प्रयत्नों में एक क्या अनेक जन्मों की असफलताओं को कोई महत्त्व
नहीं देते।
संसार में ईसा, सुकरात, तुलसी, ज्ञानेश्वर, तुकाराम आदि न जाने कितने महात्मा
एवं महापुरुष ऐसे हुए हैं, जिनको जीवन भर असफलताओं, संकटों तथा विरोधों का
सामना ही करना पड़ा किंतु वे
एक क्षण को भी न तो अपने ध्येय से विचलित हुए और न निराश ही। वे तन-मन से
अपने प्रयत्न में निरंतर लगे ही रहे जिसका परिणाम यह हुआ कि अपने जीवन के बाद
संसार ने उन्हें परमात्मा के रूप में पूजा, उन्हें जीवन का आदर्श बनाया और
उनके स्मारक स्थापित किए। उनके जीवन की पराजय जीवनोपरांत महान विजय में बदल
गई।
किंतु पराजय से विजय और असफलता से सफलता का जन्म होता तभी है जब मनुष्य उनसे
नई शिक्षा, नई स्फूर्ति, नया साहस और नया अनुभव लेकर आगे बढ़ता रहता है।
जिसने असफलता को केवल असफलता समझकर छोड़ दिया उसकी उपेक्षा कर दी और उससे
किसी शिक्षा का लाभ नहीं उठाया तो उसकी मूल्यवान असफलता मात्र असफलता बनकर ही
रह जाती है, तब ऐसी असफलता का सफलता में अथवा पराजय का विजय में बदलना कठिन
हो जाता है।
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- सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
- सफलता की सही कसौटी
- असफलता से निराश न हों
- प्रयत्न और परिस्थितियाँ
- अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
- सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
- सात साधन
- सतत कर्मशील रहें
- आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
- पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
- छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
- सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
- अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए